Monday 25 January 2021

 जिस्म की ईमारत पे खड़ा वो प्यार था या सिर्फ छलावा था..सोच कर आंखे भर आई उस की...जिस्म तो 


जिस्म है,रूह की बंदिशों से परे...रूह तो निखरी-निखरी और मासूम है..किसी देवालय की तरह...जिस्म 


तो किसी रोज़ मिट जाए गा,सूखे पत्तो की तरह...रूह मे समेटे इस प्यार को,वो साथ अपने ले जाए गी...


जन्म जितने भी ले गी, इसी मासूम रूह के साथ नए जिस्म को लाए गी...रूहानी-एहसास प्यार का, वो 


फिर से उसी को याद दिलाए गी...जीना तो तेरे ही संग था हर जन्म,यह बात दोहराए गी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...