Wednesday 20 January 2021

 गहरे कोहरे की चादर मे लिपटी थी वो...मंज़िल थी बहुत दूर,पर कोहरे की चादर भी तो बेहद गहरी थी...


दूर बहुत दूर इक दीपक दिखा,जलता हुआ...क्या मुमकिन होगा उस तक पहुंचना..थके थे पांव पर दिल 


तो भरा आशा से था..वो दीपक ही उस की आखिरी और पहली उम्मीद थी...इस से पहले वो दीपक 


बुझने पे आए,वो मंज़िल अपनी तय करने वाली थी...कदम गिरे,टूटे..पर दिल की उम्मीद कायम थी...


जीवन बुझा तो उम्मीद भी बुझ जाए गी..यह ठान दिल मे तेज़ कदमो से कोहरे को चीरती वो दीपक 


की और  चल दी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...