गहरे कोहरे की चादर मे लिपटी थी वो...मंज़िल थी बहुत दूर,पर कोहरे की चादर भी तो बेहद गहरी थी...
दूर बहुत दूर इक दीपक दिखा,जलता हुआ...क्या मुमकिन होगा उस तक पहुंचना..थके थे पांव पर दिल
तो भरा आशा से था..वो दीपक ही उस की आखिरी और पहली उम्मीद थी...इस से पहले वो दीपक
बुझने पे आए,वो मंज़िल अपनी तय करने वाली थी...कदम गिरे,टूटे..पर दिल की उम्मीद कायम थी...
जीवन बुझा तो उम्मीद भी बुझ जाए गी..यह ठान दिल मे तेज़ कदमो से कोहरे को चीरती वो दीपक
की और चल दी...