Sunday 31 January 2021

 धरा धरा पे चलते-चलते राधा नाम के बेहद करीब आ गए...पर्वतों के रुख पे चले तो गौरी का नाम 


महसूस कर गए...अग्नि-परीक्षा देने की सोची तो जानकी सीता के आंचल की छाँव मे,सीखने सब कुछ 


चले आए...नाम बेशक सब जुदा-जुदा रहे होंगे,पर प्रेम की तख्ती पे सब पवित्र हो गए...कोई मिट गया 


तो कोई जी गया तो कोई धरा मे ही समा गया...प्यार का रंग-रूप रहा ऐसा,देह नहीं..जीवन भी नहीं..


मगर सदियों तक प्रेम अमर हो गया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...