देह तो चाँदी सी थी,पर मन तो काला था..फिर क्यों सोचा कि यही तो प्यार का बोलबाला होने वाला था..
प्यार की पहली मंज़िल पे जरा रुक के तो देख,यहाँ सूरत से कही जयदा दिले-नादान का पहरा है..मन
जितना उज्जवल उतना ही प्रेम गहरा और गहरा...खूबसूरती के कसीदे तो वो पढ़ते है जो सिर्फ देह की
जरुरत से प्रेम करते है...प्रेम मे जिस को सिर्फ नख-शिख ही दिखाई दे,वो प्रेम को सिर्फ गाली देते है...
प्रेम रूहों का अटूट बंधन है,रूप तो बरसो बाद ढल ही जाते है...देह-प्रेम कोई प्रेम नहीं..जो पूजा के
मनको मे सिमट जाए,जो रात-दिन उसी की सोच मे खो जाए..प्रेम तो ऐसा ही होता है....