बहुत अँधेरा है,रौशन करो ना इस शाम को...अँधेरे से डर कर उस ने कहा..''अंधेरो से डर कैसा..साथ
हू मैं तेरे मेरी जाना...यह दीपक तो सिर्फ शाम का अँधेरा दूर कर पाए गा...तेरे लिए मेरा साथ रौशनी
बन कर तेरी हर राह जगमगाए गा''....किस ने कहा कि कलयुग मे प्रेम सच्चा नहीं होता...जो गहरे से
गहरे अँधेरे से टकरा जाए...जो वफ़ा की पाक-जोत रूह से जलाए...ईमानदारी से अपने साथी का साथ
आखिरी सांस तक निभा जाए..वहाँ गहरे अँधेरे से कौन घबराए...