बहती हुई नदिया की धारा,जो भूली रास्ता अपना...ढूंढ रही थी समंदर को,खुद को समर्पित करने को..
राह कठिन रही इतनी कि बरसों भूलभुलैया मे भटकी इतनी...किस से कहती कि समंदर का घर है
कहाँ...बाकी नदिया उस को समझ ना पाती...यही थी उस की तक़दीर की कहानी...तक़दीर किस ने
देखीं...नदिया की असीमता किस ने जानी..आखिर उस का काम था,बहते रहना...बहते रहना...उम्मीद
के दौर मे चलते ही रहना...पावन धारा जो थी,कठिन रास्तो से कहाँ डरती थी..सफर पे चलना नियति
उस की..समंदर तक पहुंचना भी नियति उस की....