नफरत..जलन और ईर्ष्या से कोसों दूर है ''सरगोशियां'' मेरी...प्रेम के करोड़ो अरबो रंगो से अभिभूत है
''सरगोशियां'' मेरी...यह सिर्फ ढाई अक्षर नहीं प्रेम के,यह तो भरे है ढाई करोड़ से भी जयदा जज्बातों
से भरे..पर नफरत,जलन,ईर्ष्या को आने की इज़ाज़त नहीं देती ''सरगोशियां'' मेरी...प्यार मे इन की जगह
होती नहीं और गर होती होगी तो प्रेम की तौहीन ही होगी..और ''सरगोशियां '' तौहीन को जगह अपने
पन्नों मे नहीं देती...तभी तो धरा से जुड़ी है ''सरगोशियां'' मेरी...कितने है दीवाने इस के कि मेरी
''सरगोशियां'' है ही इतनी प्यारी...