Sunday 16 December 2018

महजबीं ना कहो.. मेहरबां ना कहो...मेरी दी मुहब्बत को अहसान का नाम ना दो..मेरी राहो मे यू

फूल बिछा कर,मुझे मसीहा का ख़िताब ना दो..तुम तारीफ के हकदार हो,मगर खुद को नाचीज़ कह

कर अपना अपमान हरगिज़ ना करो...प्यार कोई खेल नहीं,प्यार बंधन मे बंधा कोई नाम नहीं...

इबादत की चादर के तले,कोई धरम मेरा नहीं,कोई धरम तेरा भी नहीं..फिर इस मुहब्बत को यू

ना मसीहा बना,ना नाचीज़ बन कर मेरा दिल यू  दुखा....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...