Wednesday, 19 December 2018

जिक्र जब जब हुआ तेरी बातो का,क्यों यह दिल उदास हो गया...भॅवर मे जो देखा किसी को,यह मन

क्यों परेशां हो गया...हिम्मत जो किसी की टूटी देखी,खुद अपना ज़माना याद आ गया...ना जाने कैसे

कैसे मोड़ थे,जब ज़माना दर्द पे दर्द देता रहा...पलकों को ना कभी तब नम होने दिया,जब सैलाब का

सामना होता रहा...भरा तो सैलाब आज भी अंदर है,मगर हिम्मत अपनी को दाद देते देते ज़माने को

छोड़ा और ज़मीर अपने का कहना मान लिया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...