मजबूरियां जो कभी सर चढ़ कर मज़ाक बनाया करती थी, तेरे आने की ख़ुशी मे दिल से मुस्कुराया
करती है...तू कही भी नहीं यह जता कर,तेरे मेरे रिश्ते को झूठलाया करती है...अजनबी बन कर
अपनों के साथ भी परायों की तरह रहते है..जिस बात को सच कोई ना समझे,उसी राज़ को सब से
छुपाया करते है.. इस नासमझी की दाद देते है सभी को,हमारी ही हंसी को हम से छीन लेने का
किरदार निभाया करते है...
करती है...तू कही भी नहीं यह जता कर,तेरे मेरे रिश्ते को झूठलाया करती है...अजनबी बन कर
अपनों के साथ भी परायों की तरह रहते है..जिस बात को सच कोई ना समझे,उसी राज़ को सब से
छुपाया करते है.. इस नासमझी की दाद देते है सभी को,हमारी ही हंसी को हम से छीन लेने का
किरदार निभाया करते है...