दरकार नहीं..मुहब्बत का कोई वादा भी नहीं...दूर दूर तक जहा जाती है नज़र,सिलसिला मुलाकातों का
अब भी नहीं...रूसवा भी नहीं..घटा बिखर कर कभी बरस जाए,ऐसा मुमकिन कभी भी नहीं...आसमां
को छू लेने का गम होता है कभी,मगर मंज़िल तक पहुंचे गे यह जनून कायम है अभी....कोई शिकवा
तुझ से नहीं,कि इश्क़ को पास आने दिया ही नहीं...मुहब्बत मे दगा कैसे होती कि मुहब्बत का वादा
दूर दूर तक कही भी नहीं...
अब भी नहीं...रूसवा भी नहीं..घटा बिखर कर कभी बरस जाए,ऐसा मुमकिन कभी भी नहीं...आसमां
को छू लेने का गम होता है कभी,मगर मंज़िल तक पहुंचे गे यह जनून कायम है अभी....कोई शिकवा
तुझ से नहीं,कि इश्क़ को पास आने दिया ही नहीं...मुहब्बत मे दगा कैसे होती कि मुहब्बत का वादा
दूर दूर तक कही भी नहीं...