Wednesday 28 November 2018

बूंदे यह बारिश की..बे रोक टोक दरारों से अंदर आ जाया करती है...क्यों दे जाती है ऐसा गीलापन,जो

बरसो बाद भी सीलन का अहसास देती है...उजाला सूरज का हो या गर्मी मौसम की,निशान अक्सर

फिर भी छोड़ जाया करती है...दरारे भरते भरते फिर अचानक यह बूंदे क्यों बे रोक टोक दुबारा आ

जाया करती है...क्यों डर नहीं इन्हे सूरज की उस गर्मी का,जो आहे-बगाहे इन्ही को मिटा दिया करती

है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...