बहारों ने कभी इंतज़ार नहीं किया,हमारी मौजूदगी का...सुनहरे वक़्त को भी कभी याद नहीं रहा
हमारे होने या ना होने का...घड़ी की टिक टिक अहसास दिलाती रही,सुबह और शाम के आने जाने
का...खुशिया दस्तक देती रही यहाँ वहाँ,बस भूल गई रास्ता हमारे पास आ जाने का..दाद दी अपनी
हिम्मत को खुद ब खुद हम ने..बंद दरवाजो को चीरा ऐसे,वक़्त को याद दिलाया ऐसे कि किस्मत
अपनी पे खुद ही रश्क किया ऐसे...अब बहारों को इंतज़ार बस हमारा है..वक़्त को पलटने का वादा
भी अब हमारा है..
हमारे होने या ना होने का...घड़ी की टिक टिक अहसास दिलाती रही,सुबह और शाम के आने जाने
का...खुशिया दस्तक देती रही यहाँ वहाँ,बस भूल गई रास्ता हमारे पास आ जाने का..दाद दी अपनी
हिम्मत को खुद ब खुद हम ने..बंद दरवाजो को चीरा ऐसे,वक़्त को याद दिलाया ऐसे कि किस्मत
अपनी पे खुद ही रश्क किया ऐसे...अब बहारों को इंतज़ार बस हमारा है..वक़्त को पलटने का वादा
भी अब हमारा है..