कोशिश बहुत करते रहे,सुर-ताल की भाषा समझे...मगर किस्मत ने साथ दिया नहीं..लय अपनी है,यह
सोच अपनी लय के साथ वापिस घर आ गए..वही सुबह है,वही शाम..गीली रेत मे पाँव फिर धसने लगे..
सूरज की तपिश मे जलने को फिर तैयार है..चाँद मिलता नहीं सब को संसार मे,है दीपक ही काफी खुद
को ज़िंदा रखने के लिए..पाँव झुलसे बेशक,अब कोई गम नहीं..सुर-ताल हमारे लिए कभी था ही नहीं..
सोच अपनी लय के साथ वापिस घर आ गए..वही सुबह है,वही शाम..गीली रेत मे पाँव फिर धसने लगे..
सूरज की तपिश मे जलने को फिर तैयार है..चाँद मिलता नहीं सब को संसार मे,है दीपक ही काफी खुद
को ज़िंदा रखने के लिए..पाँव झुलसे बेशक,अब कोई गम नहीं..सुर-ताल हमारे लिए कभी था ही नहीं..