कितना कितना याद करे...कुछ पल या कुछ दिन..सवाल तो यादो का है,जो जीने नहीं देती..यह नैना
बेशक कजरारे सही,यह पलकें घनेरी सही..तुझे देखे बिना इन की कीमत कुछ भी तो नहीं..लफ्ज़ कितने
बोले मगर जब तल्क़ तुझ से ना कुछ बोले,लफ्ज़ सभी अधूरे है मेरे..संवरने का मौसम कब होता है,तू
साथ हो तभी होता है..वरना सादगी मे भी ज़माना हम को चाँद का टुकड़ा ही कहता है..
बेशक कजरारे सही,यह पलकें घनेरी सही..तुझे देखे बिना इन की कीमत कुछ भी तो नहीं..लफ्ज़ कितने
बोले मगर जब तल्क़ तुझ से ना कुछ बोले,लफ्ज़ सभी अधूरे है मेरे..संवरने का मौसम कब होता है,तू
साथ हो तभी होता है..वरना सादगी मे भी ज़माना हम को चाँद का टुकड़ा ही कहता है..