Sunday 23 February 2020

''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' की शायरा और आप सब की दोस्त,आप सब से रूबरू है..दोस्तों,हमारे समाज मे प्रेम,प्यार,मुहब्बत जैसे शब्दों को छुपा कर देखा और पढ़ा जाता है..क्यों,किसलिए ?? वजह है सोच की समझ की सही परख ना होना..प्रेम,प्यार और मुहब्बत पे जब एक स्त्री लखती है तो लोगो को पहले पहले अजीब लगता है..उन की सोच एक लम्बे अरसे तक इस को हज़म नहीं कर पाती..इस समाज मे औरत जब सभी कार्य-क्षेत्र मे काम कर सकती है तो वो प्रेम पे क्यों नहीं लिख सकती..मुझे बहुत ख़ुशी है कि मेरी इस ''सरगोशियां''को अब सभी दोस्त बहुत बहुत सम्मान दे रहे है..एक लेखिका,एक शायरा के रूप मे मुझे स्वीकार कर रहे है..जब यह समाज साथ देता है तो औरत के लिए अपना जनून,अपना लक्ष्य पूरा करना बहुत आसान हो जाता है..सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ...शुद्ध प्रेम की रचनाओं को बहुत प्रेम से पेश करने की पूरी कोशिश करती है..जो हमारे समाज से लुप्त हो रहा है..दोस्तों,मेरे लेखन मे कोई कमी रह जाए तो बताना मत भूलिए..बस एक आग्रह,कि अपनी भाषा,अपने शब्दों को सम्मानित ढंग से लिखे..मेरे बहुत दोस्त सवाल करते है कि ऐसा लगता है कि आप ने हमारे जीवन के प्रेम पे आज लिखा..जी नहीं,मैं किसी खास व्यक्ति विशेष के लिए नहीं लिखती..हां,पर यह प्रेम हर भाव,हर संवाद मे किसी ना किसी के जीवन से जुड़ा ही होता है..यह सरगोशियां..आप की है,तभी तो आप को लगता है,कि आप के लिए ही लिखा गया है..यही पे आ कर एक लेखक धन्य हो जाता है कि उस के शब्द लोगो को अपने लिए ही लग रहे है..जब  एक लेखक हर किसी के जीवन से जुड़ता है,उस के शब्द लोगो के दिल रूह को अंदर तक छू लेते है तो लेखक/शायर खुशनसीब होता है..मेरे साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया..आभार...आप की अपनी सी शायरा...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...