दिन तो रोज़ ही प्रेम का होता है..दिन ढले तो फिर सजना के पास होता है..क्या यह जरुरी है कि प्रेम
का दिन खास हो..जो साथी की सलामती मे जिए,उस के दर्द को आंचल मे भर ले..मजबूर मिलने और
गुफ्तगू के लिए बिलकुल ना करे..उस के थके कदमो की आहट को झट से महसूस कर ले..पिया का
प्यार ही जो तोहफा हो उस का..यही कर के जो पिया के दिल-रूह मे बसे,मुहब्बत की जुबां बस इतनी
सी होती है..तभी तो कहते है ''दिन तो रोज़ ही प्रेम का होता है''...
का दिन खास हो..जो साथी की सलामती मे जिए,उस के दर्द को आंचल मे भर ले..मजबूर मिलने और
गुफ्तगू के लिए बिलकुल ना करे..उस के थके कदमो की आहट को झट से महसूस कर ले..पिया का
प्यार ही जो तोहफा हो उस का..यही कर के जो पिया के दिल-रूह मे बसे,मुहब्बत की जुबां बस इतनी
सी होती है..तभी तो कहते है ''दिन तो रोज़ ही प्रेम का होता है''...