Tuesday, 18 February 2020

हम ने सोचा भी ना था और फ़िजा रंगीन हो गई..बरखा के पानी की तरह संगदिल हो गई..नकारते

कैसे कि यह तो दिल के बहुत करीब हो गई..दिल जो धड़का तो यह तो मुझ मे समा गई..वक़्त तो जैसे

थम सा गया..ख़ामोशी ने जैसे बसेरा ही कर लिया,मगर ख़ामोशी चुप रह कर भी बहुत कुछ बोल गई..

अनकहे लफ्ज़ बिखरे तो बिखरते चले गए..हवा थम गई पर दिल  तो मिल  ही गए..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...