हम ने सोचा भी ना था और फ़िजा रंगीन हो गई..बरखा के पानी की तरह संगदिल हो गई..नकारते
कैसे कि यह तो दिल के बहुत करीब हो गई..दिल जो धड़का तो यह तो मुझ मे समा गई..वक़्त तो जैसे
थम सा गया..ख़ामोशी ने जैसे बसेरा ही कर लिया,मगर ख़ामोशी चुप रह कर भी बहुत कुछ बोल गई..
अनकहे लफ्ज़ बिखरे तो बिखरते चले गए..हवा थम गई पर दिल तो मिल ही गए..
कैसे कि यह तो दिल के बहुत करीब हो गई..दिल जो धड़का तो यह तो मुझ मे समा गई..वक़्त तो जैसे
थम सा गया..ख़ामोशी ने जैसे बसेरा ही कर लिया,मगर ख़ामोशी चुप रह कर भी बहुत कुछ बोल गई..
अनकहे लफ्ज़ बिखरे तो बिखरते चले गए..हवा थम गई पर दिल तो मिल ही गए..