दिल ही नहीं सीने मे फिर यह आवाज़ कैसी..ज़िंदा तो है मगर तेरे बिना यह ज़िंदगी कैसी..एहसास तो
है पर गुफ्तगू का सिलसिला नहीं तो कीमत एहसास की कैसी होगी...मुहब्बत बिखरी है चारों और,पर
मेरा दामन है खाली तो मुहब्बत की बंदगी कैसी...हुस्न भरपूर है खुद मे,पास जब इश्क नहीं तो हुस्न की
यह क़यामत कैसी..अब तो बरस जा बादल बन के कि धरती बंज़र है और खाली खाली...
है पर गुफ्तगू का सिलसिला नहीं तो कीमत एहसास की कैसी होगी...मुहब्बत बिखरी है चारों और,पर
मेरा दामन है खाली तो मुहब्बत की बंदगी कैसी...हुस्न भरपूर है खुद मे,पास जब इश्क नहीं तो हुस्न की
यह क़यामत कैसी..अब तो बरस जा बादल बन के कि धरती बंज़र है और खाली खाली...