Monday 17 February 2020

राह के कांटे जितने भी हम को चुभे,हज़ारो बार चुभे...दर्द की आहट से हज़ारो बार हिले..इंसा थे

फरिश्ता तो नहीं थे..मगर इरादों के बहुत पक्के थे..मंज़िल की कोई कही खबर ना थी,मगर मिलती

हुई दुआए कुछ कम ना थी..हम ने हर बार,बार-बार इन दुआओ से अपना आँचल खूब भरा..यक़ीनन,

इन के ही साथ चले और रास्ते बना लिए..मंज़िल को तो आना था,दुआ का खज़ाना जो साथ था मेरे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...