मुहब्बत मे लरजते लफ्ज़ ना हो,ऐसे कैसे हो सकता है..नाराज़गी भरपूर हो तभी यह सब हो सकता है..
दिनों खामोश रहना,मगर दिल से इक इक पल याद करना..सामने आ जाए तो मुँह फेर लेना..गर फिर
दिखाई ना दे तो आँखों मे अश्क भर लेना..जो मनाए पिया,तो खुश होना मगर लफ्ज़ फिर आधे-अधूरे
छोड़ देना..समर्पण की बेला मे सब भूल जाना और रिश्ते को और और गहरा कर देना..
दिनों खामोश रहना,मगर दिल से इक इक पल याद करना..सामने आ जाए तो मुँह फेर लेना..गर फिर
दिखाई ना दे तो आँखों मे अश्क भर लेना..जो मनाए पिया,तो खुश होना मगर लफ्ज़ फिर आधे-अधूरे
छोड़ देना..समर्पण की बेला मे सब भूल जाना और रिश्ते को और और गहरा कर देना..