किनारे-किनारे चल रहे थे बहुत संभल-संभल कर..कोई आ रहा है पीछे भी हमारे,इस से बेखबर अपना
रास्ता बना रहे थे खुद के इशारे पर..कही थी बालू बहुत गीली तो कही थी रेत बहुत पशेमान..गिरने की
कोई मंशा ना थी,पर हौसला छोड़ दे..यह इरादा तो बिलकुल भी ना था..हंस रहे थी खुद की बनाई दुनियाँ
पे,जहाँ सपने भी थे खुद की अपनी मर्जी के...पलट के जो देखा,वो तो खुद का साया था..उस के सिवा अब
कौन हमारा था...
रास्ता बना रहे थे खुद के इशारे पर..कही थी बालू बहुत गीली तो कही थी रेत बहुत पशेमान..गिरने की
कोई मंशा ना थी,पर हौसला छोड़ दे..यह इरादा तो बिलकुल भी ना था..हंस रहे थी खुद की बनाई दुनियाँ
पे,जहाँ सपने भी थे खुद की अपनी मर्जी के...पलट के जो देखा,वो तो खुद का साया था..उस के सिवा अब
कौन हमारा था...