Friday 16 April 2021

 इत्मीनान नहीं,चैन नहीं...खुली हवा मे अब सांस लेना भी आसान नहीं...दूर बहुत दूर इंसान से इंसान हो 


रहा..हर जगह त्राहि-त्राहि और कल क्या होगा,यह सोच काँप रही हर ज़िंदगी...कभी अपनों की चिंता तो 


कभी परवरिश का भय...अंदर ही अंदर टूट रहा हर कोई...कोई आवाज़ अंदर से इस दिल-रूह से आई...


'' जैसा बोया वैसा ही तो काटे गा..किसी का दिल चीरा तो वो  तेरे दिए दर्द से बिलबिला गया तो तुझ को 


तो वो नज़र ना आया..फिर आज अपने दर्द से क्यों रोया..अब कुदरत कर रही इंसाफ तो तुझ को उस को 


दिए दर्द का कुछ तो याद आया''...इस हाथ दे उस हाथ ले,कुदरत तो यही हिसाब करती है..झांक खुद 


मे और अब भी संभल जा...कुदरत अपने कहर से कब बाज़ आती है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...