Saturday 17 April 2021

 बह रहे है सदियों से नदिया की धारा की तरह..रुके नहीं कभी बेशक टकराते रहे तूफानों से..टूटना कभी 


सीखा ही नहीं,रुकना भी सीखा नहीं...राह मे आती रही हज़ारो मुश्किलें,धीरज से पार कर के मुस्कुराना 


और खुदी पे नाज़ करना...यह सब भी तो सीखा इन्हीं तमाम मुसीबतों से..डर के जीना,खौफ मे रहना..


यह कौन से शब्द है...खड़ी होगी बेशक मौत सामने तो भी डर कर सांस ना छोड़े गे..गर डरना होता तो 


ज़िंदा रहना कभी मकसद नहीं होता..जाए गे माँ-बाबा के पास मगर फक्र से सर उठा कर..उन के नाम 


को,उन के संस्कारो को संसार मे ज़िंदा छोड़ कर ही उन से नज़रे मिला पाए गे..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...