ना कोई रंजिशे है ना कोई शिकायतें है...रख रहे है जहां जहां भी कदम,तेरे ही नाम की इमारतें है..क्यों
वीरान है यह सड़कें...क्यों सन्नाटा पसर आया है...देख के चाँद को आसमां मे,क्यों इन आँखों का कोर
नम हो आया है..बेसाख़्ता दिल ने आवाज़ दी,यह तो आसमां का शहजादा है...कोर भीगे और जय्दा,यह
रास्ता अब धुंधला नज़र आया...इक्का-दुक्का इंसान दिखे जिन की चाल मे तेज़ी का असर नज़र आया...
हम क्यों चल रहे है तन्हा-तन्हा,शायद आँखों का नीर कुछ जयदा ही इन आँखों मे आज भर आया...