Friday 4 June 2021

 ना कोई रंजिशे है ना कोई शिकायतें है...रख रहे है जहां जहां भी कदम,तेरे ही नाम की इमारतें है..क्यों 


वीरान है यह सड़कें...क्यों सन्नाटा पसर आया है...देख के चाँद को आसमां मे,क्यों इन आँखों का कोर 


नम हो आया है..बेसाख़्ता दिल ने आवाज़ दी,यह तो आसमां का शहजादा है...कोर भीगे और जय्दा,यह 


 रास्ता अब धुंधला नज़र आया...इक्का-दुक्का इंसान दिखे जिन की चाल मे तेज़ी का असर नज़र आया...


हम क्यों चल रहे है तन्हा-तन्हा,शायद आँखों का नीर कुछ जयदा ही इन आँखों मे आज भर आया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...