पूरी तरह अभी सैलाब से निकले भी नहीं कि एक नया तूफ़ान फिर आने को है..अपने चाँद को
निहारने फिर कोई सितारों के झुरमुट से,मुझे रुलाने वाला है...छीन तो नहीं सकते तुझ से,निहारने
का यह हक़..पर खुद को बरसने से रोके,यह भी कर नहीं सकते...यह वक़्त भी क्या शै है,जो गुजर
कर भी फिर सामने खड़े हो जाता है...मजबूत कितना भी बने,यादो को झंझोड़ कर सामने फिर ले
आता है...
निहारने फिर कोई सितारों के झुरमुट से,मुझे रुलाने वाला है...छीन तो नहीं सकते तुझ से,निहारने
का यह हक़..पर खुद को बरसने से रोके,यह भी कर नहीं सकते...यह वक़्त भी क्या शै है,जो गुजर
कर भी फिर सामने खड़े हो जाता है...मजबूत कितना भी बने,यादो को झंझोड़ कर सामने फिर ले
आता है...