लौट आना गर इतना ही आसां होता,तो यक़ीनन तेरी दुनिया मे कब के चले आते...ना सहते कभी
दर्द इतना ना सांसो के भारीपन को सँभालते रहते..लबो को बिलकुल सी लेना,जुबां से जरुरत भर
लफ्ज़ कहना..इस को अपनी आदत मे शुमार ना करते...हज़ारो बाते सिर्फ अपने परवरदिगार से
क्यों करते,गर यह दुनिया और दुनिया के बाशिंदे हम को अंदर से समझ जाते..लौटे गे तुझ तल्क़
काम अधूरे सारे पूरे कर के...
दर्द इतना ना सांसो के भारीपन को सँभालते रहते..लबो को बिलकुल सी लेना,जुबां से जरुरत भर
लफ्ज़ कहना..इस को अपनी आदत मे शुमार ना करते...हज़ारो बाते सिर्फ अपने परवरदिगार से
क्यों करते,गर यह दुनिया और दुनिया के बाशिंदे हम को अंदर से समझ जाते..लौटे गे तुझ तल्क़
काम अधूरे सारे पूरे कर के...