Tuesday, 30 April 2019

शिकस्त दे रहे है हर रोज़ इन गमो को धीरे धीरे--लोग कहते है हमारी मुस्कराहट और गहरी हो रही

है धीरे धीरे--चेहरे का नूर रोज़ बढ़ रहा है धीरे धीरे--कुछ सुना तो कुछ अनसुना कर दिया--ज़मीर

अपने की सुनी और दिल को प्यार से समझा दिया--यह बात और है कि रोज़ मुलाकात करते है इन

गमो से,आईना गवाह है कि संभलते भी है तो धीरे धीरे---शिकस्त दे कर पूरी तरह,चमके गे सूरज

की तरह--------मगर धीरे धीरे--

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...