Saturday 27 April 2019

आज का सपना कैसा था..लगता है हकीकत का कोई जीता जागता भुलैखा है---बरसो पहले जो सबक

सिखाया,उस की कीमत दिल ज़मीर के आस पास ही है--माँ  के घर की चौखट पे पांव धरने आज भी

 जाती हू--हर दीवार पे,तेरे होने के अहसास को समझ पाती हू--,तेरी हर सीख को माँ आज भी रूह से

निभाती हू---खून का रिश्ता भले ना था,पर मैंने तो तुझी को माँ माना था--तेरी धरोधर तुझी को सौंपू

मेरी हकीकत का यही भुलैखा है---


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...