आज का सपना कैसा था..लगता है हकीकत का कोई जीता जागता भुलैखा है---बरसो पहले जो सबक
सिखाया,उस की कीमत दिल ज़मीर के आस पास ही है--माँ के घर की चौखट पे पांव धरने आज भी
जाती हू--हर दीवार पे,तेरे होने के अहसास को समझ पाती हू--,तेरी हर सीख को माँ आज भी रूह से
निभाती हू---खून का रिश्ता भले ना था,पर मैंने तो तुझी को माँ माना था--तेरी धरोधर तुझी को सौंपू
मेरी हकीकत का यही भुलैखा है---
सिखाया,उस की कीमत दिल ज़मीर के आस पास ही है--माँ के घर की चौखट पे पांव धरने आज भी
जाती हू--हर दीवार पे,तेरे होने के अहसास को समझ पाती हू--,तेरी हर सीख को माँ आज भी रूह से
निभाती हू---खून का रिश्ता भले ना था,पर मैंने तो तुझी को माँ माना था--तेरी धरोधर तुझी को सौंपू
मेरी हकीकत का यही भुलैखा है---