Tuesday 1 September 2020

 पंख तो थे पास उस के,तो वो उड़ क्यों नहीं पाई...खुला आसमां था सामने बाहें फैलाए,मगर वो उस 


को देख ही नहीं पाई...बेहद ही खूबसूरत और मासूम थी वो,पर आईना कभी देख नहीं पाई...था किस 


का इंतज़ार उस को, जिस के लिए वो ताउम्र किसी और की हो ही नहीं पाई...भरे थे सामने उस के 


ऐशो-आराम के सभी साधन,पर वो फकीरी का लबादा ओढ़े खुद से बेखबर और क्यों अनजान थी...


हां,वो अपने पिया की वो मीत थी,जो था आसमां के उस पार और वो उस के इंतज़ार मे सदियों से 


मशगूल और बेचैन थी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...