पंख तो थे पास उस के,तो वो उड़ क्यों नहीं पाई...खुला आसमां था सामने बाहें फैलाए,मगर वो उस
को देख ही नहीं पाई...बेहद ही खूबसूरत और मासूम थी वो,पर आईना कभी देख नहीं पाई...था किस
का इंतज़ार उस को, जिस के लिए वो ताउम्र किसी और की हो ही नहीं पाई...भरे थे सामने उस के
ऐशो-आराम के सभी साधन,पर वो फकीरी का लबादा ओढ़े खुद से बेखबर और क्यों अनजान थी...
हां,वो अपने पिया की वो मीत थी,जो था आसमां के उस पार और वो उस के इंतज़ार मे सदियों से
मशगूल और बेचैन थी...