Wednesday 23 September 2020

 कलम ने पूछा स्याही से..क्या तू रात भर रोई है..शायद इसीलिए यह बरसात अचानक से आज फिर 


लौट आई है...तू है सहेली जिगरी मेरी,मत छुपा दास्तां अपनी...तुझ संग बंधे है तार मेरे..अलग तुझ से 


हो जाऊ गी कैसे...आ गले लग जा मेरे,शब्दों की बयानगी से अपनी जोड़ी को सज़दा कर ले...शब्दों को 


बहा देते है आज इतना,जब तल्क़ यह बरसात बरसे तब तल्क़ उतना... 

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...