कलम ने पूछा स्याही से..क्या तू रात भर रोई है..शायद इसीलिए यह बरसात अचानक से आज फिर
लौट आई है...तू है सहेली जिगरी मेरी,मत छुपा दास्तां अपनी...तुझ संग बंधे है तार मेरे..अलग तुझ से
हो जाऊ गी कैसे...आ गले लग जा मेरे,शब्दों की बयानगी से अपनी जोड़ी को सज़दा कर ले...शब्दों को
बहा देते है आज इतना,जब तल्क़ यह बरसात बरसे तब तल्क़ उतना...