Sunday 20 September 2020

 वो मिली उस को मंदिर की सीढ़ियों पे..इक भिखारी के वेश मे...कौन है वो,यह जाने बगैर उस ने दिया 


उस को खाना इंसानियत के तौर पर..सुन उस की सम्भ्य भाषा वो चौक गया..सुन उस की दास्तां वो 


तो हिल गया...उस का साथी जो कभी उस के प्रेम मे पागल था,आज बीमार जान यहाँ मरने के लिए 


उसे छोड़ गया..एक वो इंसान था और एक यह भी इंसान है..ज़माने की परवाह किए बगैर वो संग उस 


को अपने ले आया...इंसानियत का रिश्ता कब पाक पवित्र बंधन मे बदला,यह सिर्फ ईश्वर ही जान पाया..


आज वो है उस की राजकुमारी और वो मंदिर की सीढ़ियों पे मिला उस का अपना राजकुमार है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...