Wednesday 23 September 2020

 कभी पूरी तरह जिसे कोई पढ़ ना सके,बस वैसी ही इक किताब है हम...एक पन्ना ही जब समझ ना आए 


तो अगला पन्ना क्यों खोले गे आप...कठिन नहीं बहुत ज़्यदा सरल है हम..किताबों की भीड़ मे सब से जुदा 


इक ख़ास किताब है हम...दुनियां सरल समझ हम को नकारती  रही पर जब हमारी फितरत समझ आई 


तो पीछे भागने लगी...हम तो आज भी खड़े अपने सरल मोड़ पर,अब यह दुनियां तेज़ रफ़्तार से भागे तो 


खता हमारी तो नहीं...किताबें कभी बोला नहीं करती..वो रहती है सदा एक जैसी..पढ़ने वालो के विचार 


ही बदल जाते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...