यह मौसम की कौन सी बेला है...पतझड़ चल रहा है या उदासी की कोई मायूस बेला है...सरसराहट सी
है पत्तों मे और ख़ुशी दूर कही देख रही तमाशा है...बेवक़्त की बारिश ने कहा धीमे से कानो मे...कुछ भी
सदा एक सा नहीं रहता है...यह पतझड़ यह उदासी का मौसम भी ढल जाए गा...मगर याद रखना,जो
मिले गी ख़ुशी की महफ़िल..उस का दौर भी ना बहुत जयदा है..बेवक़्त जैसे मैं आई हू,ख़ुशी-दुखी भी
ऐसे पंछी है...मुस्कुरा पहले की तरह,यह तो मौसम के बरसो पुराने रेले है...