Friday 18 September 2020

 यह मौसम की कौन सी बेला है...पतझड़ चल रहा है या उदासी की कोई मायूस बेला है...सरसराहट सी 


है पत्तों मे और ख़ुशी दूर कही देख रही तमाशा है...बेवक़्त की बारिश ने कहा धीमे से कानो मे...कुछ भी 


सदा एक सा नहीं रहता है...यह पतझड़ यह उदासी का मौसम भी ढल जाए गा...मगर याद रखना,जो 


मिले गी ख़ुशी की महफ़िल..उस का दौर भी ना बहुत जयदा है..बेवक़्त जैसे मैं आई हू,ख़ुशी-दुखी भी 


ऐसे पंछी है...मुस्कुरा पहले की तरह,यह तो मौसम के बरसो पुराने रेले है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...