Friday 18 September 2020

 आसमां तो सदियों से ऐसा ही है...वो बदला नहीं..कभी कभार घिर आते है बादल या बरखा बरस जाती 


है...यह धरा भी कहां बदलती है..बस कभी धमाकों से हिल जाती है...सूरज भी हमेशा निकलता है...


फर्क सिर्फ इतना है कि तेज़ी मिजाज की कभी नरम है तो कभी बेहद गर्म...चाँद भी सदियों से कायम 


है..कभी वो आधा अधूरा है तो कभी पूरे शबाब पे है..फिर हम कैसे बदल सकते है...फर्क हम मे भी 


इतना ही है,कभी थके है काम के बोझ से तो कभी अपनी परेशानियों से घायल है....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...