Thursday 17 September 2020

 दूर बहुत दूर तक,चादर फैली है अरमानों की...आसमां ने बाहें फैला दी धरा की धूप छाँव पे...धरा 


खामोश है उस के इस अनजान अंदाज़ से..ख़ामोशी से देखा आसमां की तरफ और  अपने ही खामोश 


अंदाज़ से पूछ लिया,क्यों आज मेहरबान हो मुझ पर...दोनों ही खामोश थे..शायद ख़ामोशी ही उन दोनों 


की जुबान थी...शायद गुफ्तगू भी यही से इन की पहचान थी...तू है सितारा दूर का और मैं हू कण इस ही 


जमीन का...फिर भी जुड़ गए,आत्मीयता शायद इसी का नाम है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...