Thursday, 17 September 2020

 पैजनियां के घुंगरू बजते बजते बिखर गए...जहां भी बिखरे वहां वहां अपनी खास पहचान छोड़ गए...


जिस ने सराहा उन को, उन के लिए वो गीत प्यार का बन गए...जिस ने कीमत ना जानी इन की,उन के 


लिए वो सिर्फ घुंगरू रह गए...यह घुँगरू जब भी इक साथ सजते है पैजनियां मे,इन का वज़ूद महफ़िल 


को सजा देता है..यह बात और है,कोठे पे बजे तो नफरत का नाम हो जाता है...गौरी के पांव मे सज़े तो 


दिल  पिया का लूट जाता है..नृत्य को अर्पण करे तो भेंट बन जाता है....


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...