पैजनियां के घुंगरू बजते बजते बिखर गए...जहां भी बिखरे वहां वहां अपनी खास पहचान छोड़ गए...
जिस ने सराहा उन को, उन के लिए वो गीत प्यार का बन गए...जिस ने कीमत ना जानी इन की,उन के
लिए वो सिर्फ घुंगरू रह गए...यह घुँगरू जब भी इक साथ सजते है पैजनियां मे,इन का वज़ूद महफ़िल
को सजा देता है..यह बात और है,कोठे पे बजे तो नफरत का नाम हो जाता है...गौरी के पांव मे सज़े तो
दिल पिया का लूट जाता है..नृत्य को अर्पण करे तो भेंट बन जाता है....