राज़ की बात सुने गे जरा..वो बात है इतनी ख़ास क्या सुन सके गे जरा..हज़ारो फूल महके गे,कितने
मोती लब पे लहरे गे..क्या पहचान सके गे आप..कुछ तन्हाईयाँ अंगड़ाइयाँ ले रही है ख़्वाबों मे..कुछ
सपने सज रहे है दिल के आंचल मे...लोग बरबस हमारी बलाईया लेने लगे...जिस राह से गुजरे,वही
पे सज़दा करने लगे..तेरे दिल के जलने की महक मुझे आ रही है यहाँ तक..वो गुस्से से भरी आंखे दिख
रही है यहाँ तक...चल छोड़,राज़ की यह बात अब बताए गे ना तुझे.....