वादियों मे घुला रंग प्यार का तो यह वादियां भी महक उठी..हम ने जैसे किए सोलह सिंगार,हर दुल्हन
हमें देख शर्मा गई...नूर देख हमारे चेहरे का वो बोले..किस बगिया का फूल हो जो इतनी मासूम हो...
''इस नूर की रौशन बिजली तुझी पे गिरने वाली है..जिस बगिया से आए है उस बगिया की शान ही
निराली है...संभाल जरा दिल अपना,यह रौशन-बिजलियां रोज़ रौशन नहीं होती...जिस बगिया के हम
फूल है वहां उदासियाँ क़बूल ही नहीं होती..संग मेरे खिलखिला,इस नूर को कर सज़दा और सर झुका''..