Friday 18 September 2020

 वो संग संग चल रहे है हमारे,रेल की इन पटरियों की तरह...ना साथ है ना कोई दूरी है,बस मिलना नहीं 


कभी दो अजनबियों की तरह....दुनियां की भीड़ गुजरती रहती है हम दोनों के दरमियां...फिर भी क्यों 


तन्हा है हम दोनों अकेले पंछी की तरह...जोरों से चीख़े सुनाई दे जाती है जैसे बिजलियां कड़क के फिर 


दफ़न हो रही हो यहाँ...फिर छूट जाता है यह साथ...पटरियों पे चलती यह रेल जब पहुँचती है अपने देश 


अपने गांव...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...