नशे मे चूर है ना जाने कितनी ही ज़िंदगियां आज...दौलत मिली,शोहरत मिली मगर यही दौलत सर पे
नशा बन चढ़ गई आज...क्या यह नशा बहुत जरुरी है...क्या यह नशा ज़िंदगी की कीमत से भी जयदा
अनमोल है..यही दौलत किसी जरूरतमंद को दी जाती तो कितना नाम अच्छों मे आता...नशे की भीड़
मे खोए तो नाम बदनामी के अन्धकार मे जाता...यह दौलत भी कमाल है,कही कोई इस के बिना भूखा
है तो कही कोई इस के साथ नशे की गोद मे है...