Friday 4 September 2020

 आकाश की तरह था उस का आंचल...हल्का नीला और फैला हुआ चारों तरफ...अश्क की कुछ बूंदे 


गिरा दी उस ने उजड़ी हुई धरा पर...ताकत है कितनी उस के अश्के-हुनर मे,निहारना था बाकी उस 


की किस्मत के शबाब मे...वक़्त उठ गया खुद की चाल से और वो बूंदे अश्क की हो गई आबाद...


जज्बातों का बसेरा तो उस ने जन्मा दिया पर क्या रुख ज़िंदगी का उस ने किसी का बदल दिया...


आंचल तो आज भी है नीला और फैला हुआ..क्या जज्बातों की कारागिरी उतनी ही मजबूत है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...