रेखा भी कैसी सी रेखा है...सीधी साधी समतल समतल...जैसी इक गौरी के दिल के जैसी...दिल जो
धड़का संग पिया के तो रेखा हो गई ऊपर नीचे,बस बहकी बहकी नदिया के हलचल जैसी...छुआ
प्यार से जब सजना ने,हाय दईया....यह तो घूम गई इक पहिए जैसी...आंगन खिला तो रेखा खिल गई
मजबूती से,किसी बावरे मन के जैसी...वक़्त चला आगे तो रेखा बनी किसी अजीब हलचल के जैसी...
जीवन हारा साँसे हारी,रेखा बन गई फिर से सीधी सीधी समतल समतल..फिर ना कभी अब चलने वाली.