आंख का यह आंसू...क्या क्या बयां कर देता है...मिलती है ख़ुशी तो यह आंख छलक जाती है...कोई
दिल को दुख दे तो यह आंख जल्दी से भर जाती है...कही दूर पिया का सन्देश ना मिल पाए तो खुद
मे अकेले ही बरस पड़ती है..बात माँ की ममता की करे तो याद कर अपनी औलाद को सीने मे कसक
लिए बह जाती है...यह आंख का करिश्मा भी क्या क्या खेल दिखाता है..वो आंसू जो ना रुकता है और
ना किसी से गिला करता है...खुद को अश्क नाम दे हज़ारो वजहों से बह जाया करता है...