दूर बहुत दूर तक फैली है दुआओं की खूबसूरत नगरी..किस को चुने और किस को संभाले..किस को
लगाए गले तो किस दुआ को रूह से जोड़े...आदतन अपनी....मुस्कुरा दिए इतनी दुआओं के सुन्दर
मेले मे...क्या यह सब हमारी है...क्या यह हमारी ज़िंदगी की धरोहर है...किसी ने अंदर से आवाज़ दी,
हां यह सब तेरी ही तो है..मगर तब तक जब तक,तेरे दिल का आईना साफ़ है..जिस दिन गरूर की
छवि इन पे छा जाए गी..जिस दिन सिक्को की चमक तुझ पे हावी हो जाए गी..यह लुप्त हो जाए गी..