यह नन्हा सा दिल जो बुझने लगा था चुभते खंजर के तले...तूने अहसास दिलाया,मैं हू ना साथ तेरे...
यह दिल का आईना तेरी बातों से फिर निखरा...नख से शिख तक मेरा जिस्म फिर महका...क्यों फिर
जी हुआ तेरी बाहों मे सिमट-सिमट जाए...तेरे हर लफ्ज़ के कायल हो जाए...हर वो दास्ताँ जो भूल चुके
वक़्त के इस सागर मे फिर से इस को याद कर ले...जवाबदेही ना तेरी तरफ से हो ना मेरी और से...
कुदरत साथ तेरे भी हो और साथ मेरे भी हो... मेरी नासमझी पे गरूर तुझे आज भी हो...दिल जो है
इतना छोटा सा,यह तेरी मेरी बातों से कभी खामोश ना हो...