अभिमान किस बात का करे,ऐसा कौन सा मुकाम हासिल कर लिया हम ने...गरूर किस के लिए करे..
क्या हम ने खुदा का दर्ज़ा पा लिया..शब्दों को तोड़ा-मोड़ा और कुछ लोगों के लिए बस ख़ास हो गए..
अभिमान और गरूर को जो खुद पे हावी कर ले गे,उसी दिन माँ-बाबा की दुआओं से दूर हो जाए गे..
कुछ बन भी गए तो क्या हुआ...कितने और भी है जो आसमां के चमकते सितारे है...कभी कुछ पाया
तो कभी कुछ खोया,ज़िंदगी इसी का तो नाम है...अभिमान कैसे होगा,जब देह के दाम भी मिटटी के
भाव हो जाते है...