दोस्तों...''सरगोशियां'' आप के लिए लिखती है...समाज के लिए भी लिखती है..माता-पिता के प्रेम को भी महत्त्व देती है...कोशिश रहती है कि प्रेम के हर पहलू को शब्दों मे ढाल दू..प्रेम की अतिसीमा..प्रेम की अवहेलना..प्रेम मे दूरी..और भी ना जाने कितने रूप...जो यह कलम खुद भी लिखने से पहले नहीं जान पाती..बस उस ईश्वर का हाथ सर पे होता है और कलम लिखती चली जाती है...दोस्तों...हर लेखक अपने लेखन मे तभी खरा उतरता है जब उस की रचना को पढ़ने वाले उस की सही-गलत समीक्षा करते है... हमेशा की तरह यह शायरा भी आप सभी से अनुरोध करती है..जहां पर कुछ भी कमी लगे मुझे बताए..यह ''सरगोशियां,प्रेम ग्रन्थ'' उस मुकाम तक तभी जा सकता है जब आप सब दोस्त साथ दे गे...मन करे तभी मेरे लेखन को सम्मान दे..यह शब्दों का ही जादू है जो बहुतो को सरगोशियां पढ़ने पे मजबूर करता है....यह इस शायरा की मेहनत और अपने उन तमाम दोस्तों के प्यार/सम्मान का ही नतीजा है कि ''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' बहुत दूर तक का सफर तय कर चुकी है..अभी और भी बहुत बाकी है....शुक्रिया दोस्तों....''आप की अपनी सी शायरा''....
Monday 21 September 2020
दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....
दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...
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एक ख़ामोशी मेरी.. कह रही हज़ारो लफ्ज़ो के ताने-बाने मगर--समझने के लिए आज कोई शख्स कही भी तो नहीं---ले लिया इन पन्नो का सहारा मगर--इन को पढ़ ...
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हर तरफ मौत का खौफ पर ज़िंदगी से जंग रोज़ जारी है...कोई चला गया तो किसी की बारी आने वाली है..कोई डर रहा है आने वाली मौत से तो कोई खुद को संभ...
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रहे कही भी मगर तेरी रूह से जुदा नहीं होते..रहते है सदा तेरे दिल की धड़कन मे,कही और नहीं जा सकते..दिल जो जुड़े है इक दूजे से..धड़कनें जो सुने...