किताबे-इश्क है मेरा..जो किताबो मे ही दफ़न हो जाए गा...होगी किताबे कितनी,यह तो मेरे मरने के
बाद ही पता चल पाए गा...क्या लिख दिया,क्या बयां कर दिया...यह मेरे रुखसत होते ही जाना जाए गा...
इन कागजों पे स्याही किस दर्द की थी..यह स्याही किस ख़ुशी की महफ़िल से थी...यह सब मेरे बाद ही
पता चल पाए गा...कद्र जिन को आज मेरी नहीं,तबियत मेरी किसी ने पूछी नहीं..इल्म ही नहीं मेरी अपनी
रज़ा क्या है...उस रज़ा को कफ़न मेरा ढाप ले गा खुद मे ही..जनाज़ा उठे गा जिस दिन मेरा...जिस्म तो
होगा दफ़न पर रूह का पिंजरा आज़ाद हो जाए गा...