Monday 28 September 2020

 यही कही हू आस-पास तेरे फिर जीवन तेरा सूना क्यों है..खिलखिलाती हंसी है मेरी चारों तरफ तो तेरे 


मन मे क्यों अँधेरा है...दर्द-दुखों का भंडार तो मेरे पास भी है फिर भी जीना हंस के है..यही तो तुझ को 


भी सिखाना है...ज़िंदगी तो हर रोज़ इक नया गम सामने रख देती है..उस से निकलना है कैसे,यही 


खूबसूरत अंदाज़ ही तो तुझे सिखाना है...मर मर के जीना भी कोई जीना है..कफ़न सर पे बांध कि 


मौत का आ जाना एक इत्तेफाक इक मौसम का खेला है..जब तक है यह साँसे,खुल के जी..ना इस के 


लिए ना उस के लिए..जी सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए...सब कर भी भी सब ने शिकायतों का थैला ही 


पकड़ा देना है..बस उतना कर जितना तेरे लिए मुनासिब है..मुस्कुरा दे अरे पगले,क्या पता यह सांस 


आखिरी और अंतिम बेला है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...